गुजरे पलों की बात ही निराली होती है. उनको याद करना मानों ऐसे लगता है जैसे हम आज उनको जी रहे हो. लगता है जैसे किसी एलबम के पन्ने एक-एक करके खुल रहे हों और घटनाएं चलचित्र की तरह सजीव हो उठे हों. पर जैसे भी आपको भान होता है कि ये तो बीता हुआ समय है, अचानक ही मन बोझिल हो जाता है. ये सच है, जब आप बहुत खुश होते हैं तो, कहीं न कहीं इक बात आपके मन में अनायास ही चली आती है, “आपकी वर्तमान खुशी के स्थायित्व से सम्बंधित”. साथ ही इक गम का साया भी अचानक आपको घेर लेता है और आप यही कामना करने लगते हैं कि ये पल स्थायी रहे. पर कहाँ ऐसा हो पाता. इसलिए जरूरत इस बात की है कि आप हर क्षण को महसूस करें. उसको जीयें.
कई कालेजों और स्कूलों के मैट्रिक और इंटरमीडिएट के रिजल्ट आने शुरू हो गए हैं साथ ही जश्न का माहौल भी बनता जा रहा है है. हो भी क्यों न इतने सालों की मेहनत रंग ला रही है. साथ ही एक स्वप्न भी देखना शुरू कर रहे है सब लोग अपने आने वाले भविष्य को लेकर. ये तो अच्छी बात है. जिदगी हमेशा से ही विस्तार लेती रही है. एक तरफ आपको नयी दुनिया में जाने का मौका मिलेगा. नए लोगों से मिलने का मौका मिलेगा तो कुछ पुरानी जगहें और लोग छूट जायेंगे. रह जायेंगी तो सिर्फ यादें. क्या उन यादों में आपके कालेज/स्कूल का मेस/कैंटीन भी रहेगा. जहाँ समय बिताने और बात करने के लिए आप जमा होते थे. जहाँ न जाने कितनी बातें हर दिन हम किया करते थे. कुछ हंसी-ठहाकों की, तो कुछ गंभीर बातें. कुछ अपने लोगों की, कुछ अपने शहर की, अपने कॉलेज की और न जाने कितना कुछ. हर दिन कुछ न कुछ नया होता था, बात करने के लिए. मेस में आने वाले लोगों की भी कई किस्में होती थीं. कुछ लोग हैं जो अक्सर ही सक्रिय रूप से शिरकत करते थे , तो कुछ कभी –कभी. कुछ ऐसे ही थे जो कभी कुछ नहीं कहते परन्तु धीमे –धीमे से मुस्कुराकर ये जतलाते रहते थे कि वो यहाँ उपस्थित हैं और इस बतकही का हिस्सा हैं. खाने की टेबल कभी उदास नहीं होती थी, न ही कभी खाने वाले लोग. हाँ जब खाने का समय नहीं हो तो आपके लिए मेस में बैठना बड़ा ही कठिन हो जाता है.
.................अब मेस का साथ तो छूट गया है लेकिन ये बात नहीं है कि वहाँ एक सूनापन होगा. हो सकता है एक सन्नाटा -सा आपके मन में हो ये सब सोचने के बाद. लेकिन आपके बाद कोई और आ जायेगा उस मेस को आबाद करने और बतकही का सिलसिला जारी रखने. आखिर मेस भी तो हमारी जिंदगी का इक भाग है और जिंदगी कभी नहीं रूकती है.
कई कालेजों और स्कूलों के मैट्रिक और इंटरमीडिएट के रिजल्ट आने शुरू हो गए हैं साथ ही जश्न का माहौल भी बनता जा रहा है है. हो भी क्यों न इतने सालों की मेहनत रंग ला रही है. साथ ही एक स्वप्न भी देखना शुरू कर रहे है सब लोग अपने आने वाले भविष्य को लेकर. ये तो अच्छी बात है. जिदगी हमेशा से ही विस्तार लेती रही है. एक तरफ आपको नयी दुनिया में जाने का मौका मिलेगा. नए लोगों से मिलने का मौका मिलेगा तो कुछ पुरानी जगहें और लोग छूट जायेंगे. रह जायेंगी तो सिर्फ यादें. क्या उन यादों में आपके कालेज/स्कूल का मेस/कैंटीन भी रहेगा. जहाँ समय बिताने और बात करने के लिए आप जमा होते थे. जहाँ न जाने कितनी बातें हर दिन हम किया करते थे. कुछ हंसी-ठहाकों की, तो कुछ गंभीर बातें. कुछ अपने लोगों की, कुछ अपने शहर की, अपने कॉलेज की और न जाने कितना कुछ. हर दिन कुछ न कुछ नया होता था, बात करने के लिए. मेस में आने वाले लोगों की भी कई किस्में होती थीं. कुछ लोग हैं जो अक्सर ही सक्रिय रूप से शिरकत करते थे , तो कुछ कभी –कभी. कुछ ऐसे ही थे जो कभी कुछ नहीं कहते परन्तु धीमे –धीमे से मुस्कुराकर ये जतलाते रहते थे कि वो यहाँ उपस्थित हैं और इस बतकही का हिस्सा हैं. खाने की टेबल कभी उदास नहीं होती थी, न ही कभी खाने वाले लोग. हाँ जब खाने का समय नहीं हो तो आपके लिए मेस में बैठना बड़ा ही कठिन हो जाता है.
.................अब मेस का साथ तो छूट गया है लेकिन ये बात नहीं है कि वहाँ एक सूनापन होगा. हो सकता है एक सन्नाटा -सा आपके मन में हो ये सब सोचने के बाद. लेकिन आपके बाद कोई और आ जायेगा उस मेस को आबाद करने और बतकही का सिलसिला जारी रखने. आखिर मेस भी तो हमारी जिंदगी का इक भाग है और जिंदगी कभी नहीं रूकती है.