“मेरे आंसुओं पे न मुस्कुरा” के रचनाकर हरिश्चंद्र प्रियदर्शी के बारे में कुछ बातें
(गीतकार हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी से बातचीत पर आधारित)
(गीतकार हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी से बातचीत पर आधारित)

इस गज़ल की रचना प्रक्रिया के बारे में पूछने पर हरिश्चंद्र जी मुस्कुराते हुए बताते हैं - शेरो-शायरी का पुराना शौक मुझसे उर्दू में भी जब-तब कुछ लिखवाता रहा है. उनका ज्यादा हिस्सा रिसालों में छप चुका है, अक्सर हरीश “परदेशी” के नाम से. उर्दू की जमीने-अदब पर ‘परदेशी’- इसलिए की अरबी स्क्रिप्ट का नेचुरल सीटिजनशिप ले नहीं पाया- देवनागरी के पासपोर्ट पर हूँ. रंगारंग जिंदगी का एक दौर वह भी था -१९६४-६५ का, जब मैं कलकत्ते-बम्बई में फिल्म का गीतकार हुआ करता था. आर० डी० बंसल की १९६५ में दिखाई गयी फिल्म “मोरे मन मितवा” के एक सिचुएसन के लिए डायरेक्टर, भाई गिरीश रंजन ने जब हिंदी गीत की जगह उर्दू ग़जल रखने की सलाह दी तो मैंने उसे ख़ुशी-ख़ुशी मान लिया. दिसम्बर १९६४ की एक पूरी रात और लेंटिन कोर्ट होटल, बम्बई का बरामदा. सामने समंदर की लहरों पर चांदनी नाच. पैदाइश एक गज़ल की हुई जिसे फिल्म में जगह मिली और बाद में मेरा ग़जल संग्रह भी इसी नाम से आया “मेरे आंसुओं पे न मुस्कुरा”. जो शुरुआत में इस तरह थी; मेरे आंसुओं पे न मुस्कुरा, कई ख़्वाब थे जो मचल गए, मेरे दिल के आईनागाह में लो, चिराग यादों के जल गए. मतला और शुरू के दो शेर फिल्म में गए.दत्ताराम ने सुर की सजावट और मुबारक बेगम की गम में डूबी हुई आवाज के साथ यह ग़जल रिकार्ड और रेडियो से पोपुलर हुई. इस गज़ल को लेकर एक दिलचस्प बहस की बात हरिचन्द्र जी बताते हैं कि गज़ल में प्रयुक्त लफ़्ज ‘आईनागाह’ के बारे में गिरीश रंजन का खयाल था कि यह मुश्किल है आम श्रोताओं की समझ के हिसाब से. हरिश्चंद्र जी का तर्क था की मुल्क में जब बंदरगाह, ईदगाह से लेकर कब्रगाह तक चल रहे हैं तो आईनागाह भी चल जायेगा. गिरीश रंजन ने जब गज़ल गायिका मुबारक बेगम से पूछा तो मुबारक बेगम ने कहा कि- यह लफ़्ज आम तमाशबीनों के लिए मुश्किल होगा. इतना सुनना था कि हरिश्चंद्र प्रियदर्शी ने दूसरी लाइन बदल दी. “मेरे दिल के शीशमहल में फिर लो चिराग यादों के जल गए” इस तरह गज़ल हमारे सामने आई. वर्त्तमान में हरिश्चंद्र जी बिहारशरीफ (नालंदा जिला, बिहार) में निवास कर रहे हैं. इनकी उम्र अस्सी साल से ज्यादा की है. फ़िलहाल ये हिंदी सिनेमा के इतिहास में चुनिन्दा २१ गीतकारों पर एक किताब लिख रहे हैं.
-नवनीत नीरव-
http://www.youtube.com/watch?v=U7kfZUkQrgA ("मेरे आंसुओं पे न मुस्कुरा" गज़ल यहाँ से सुनें)
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