“मोड़े हुए पन्नों के भीतर” युवा गीतकार/कवि अमन दलाल का दूसरा गीत एवं नवगीत संग्रह
है जिसे हिन्द युग्म प्रकाशन,नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है. मोड़े हुए पन्नों से मतलब जीवन के पृष्ठों से है, जिनके महत्व से हम कहीं न
कहीं परिचित होते हैं, जिन्हें गुजरते हुए लम्हों के साथ मोड़ते हुए चलते हैं. ताकि
जीवन अलग-अलग पड़ाव पर रुक कर हम उन्हें फिर से पलट सकें. जीवन के इस समय में एक
नया सबक सीखें और फिर उसे जीवन में उतारने का प्रण लेकर अपनी राह पर गतिमान हो जायें.
एक सतत कार्यवाही/ जो मेरे भीतर चलती है/ निर्भय होकर/ निर्विचार !
गीत शास्वत
हैं। गीत में धरती गाती हैं, पहाड़ गाते
हैं, फसलें गाती
हैं, उत्सव और मेले
ऋतुएं और परम्पराएं गाती हैं। गीत ज्यादा दिनों तक
जेहन में जिन्दा रहते हैं. गीतों के साथ एक संस्कार चलता रहता है जो हमारी युगीन परम्पराओं
में बार-बार आकर खुद को दुहराता है. जीवन कितना कुछ सीखा जाता है यह अमन के गीत
महसूस कराते हैं. ज्ञान जो अब तलक हम किताबों में ढूंढते-फिरते रहे, उसे कभी
जिंदगी के गुजरते लम्हों में संजीदगी से देखा होता तो पता चलता ये सीख ही हमारी
अपनी है.
हार के स्तम्भ/मुझपर गढ़ते गए/नियति के दोष/ अकारण मढ़ते गए/ मेरा होना कोई
आश्चर्य नहीं/ मैं सुख की/ छाया हूँ यहाँ/ नियति का प्राकृत/ जाया हूँ जहाँ/
खुशियाँ मेरा कल हैं
इन्हीं पंक्तियों के माध्यम से अमन अपने जीवन के अनुभवों को हमसे साझा करते
हैं. उम्र अभी तेईस की है. लेकिन लेखनी को पढ़ने/समझने से यही लगता है कि जीवन किसी
भी क्षण को इन्होंने बेहद हल्के तरीके से कभी नहीं लिया है.
जन्मों की शंकाओं का स्वमेव निवारण हो जाए,
प्रीत-विजित कथाओं का एकमेव उदाहरण हो जाए,
भक्ति की इस स्वस्ति में सौगात अमार हो जाए तो,
इन हाथों में तेरे दोनों हाथ अमर हो जाएँ तो
रे मीत मेरे मनभावन तू ही जीवन है,
तेरी स्मृतियाँ जैसे भागवत का कीर्तन हैं.
‘मोड़े हुए पन्नों के भीतर’ की भाषा एक उम्मीद जगाती है इस युवा कवि से. हाल के
वर्षों में हिंदी कविता में आगत शब्दों की भरमार दिखती है खासकर अंगरेजी के विशेष
शब्दों की. नए कवि जानबूझकर या फिर चकित करने के इरादे से इन शब्दों का प्रयोग
करते हैं. कुछ विशेष पाठक या श्रोता वर्ग के लिए यह बहुत ही नया अनुभव होता है
परन्तु कहीं न कहीं इन आगत शब्दों का अत्यधिक प्रयोग कवि के कविता की व्यापकता को प्रभावित
करता है. विशेष प्रयत्न से प्रयुक्त इन शब्दों का असर कविता की लोकप्रियता पर पड़ता
है. अमन की रचना में ‘विशेष प्रयत्न’ नहीं महसूस होता. शब्द खुद-ब-खुद अपने-अपने स्थान
पर आकर मानों बैठ से गए हों और भाव मुखरित हो गए हों. उर्दू के शब्दों का भी अच्छा
प्रयोग किया है अमन ने. देश के बड़े शायर मुन्नवर राणा के विचार में –“नए लिखने
वालों में जो लोग अपने पूरे संस्कारों के साथ मुझे अच्छे लगते हैं उनमें नौजवान
कवि और शायर अमन भी हैं.”
ज़िंदगी को मुक्कमल बनाता हूँ मैं,
ख़ुशबुओं की गज़ल सुनाता हूँ मैं,
इन अंधेरों से डर भी रहा न मुझे,
अपने घर को जो ख़ुद ही जलाता हूँ मैं.
अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाता है. इनके द्वारा ही भाषा में लालित्य का समावेश
होता है. अमन के गीतों में भी अलंकारगत शोभा विद्यमान है जो कभी शब्दों में प्रकट
होती है तो कभी अर्थ में. अपने गीतों में कुछ अच्छे रूपक चुने हैं गीतकार ने. इन
पंक्तियों से बातें स्पष्ट हो जाती हैं.
नित वंचना के गीत गाना/ स्वयं को स्वयं का मीत बनाना/ भांपना मनस की वेदना/
मौन से सीखना संगीत बनाना/ जीवन के इस घोर भंवर में/ ढूढ़ों धन की सम्भवना.
या फिर
प्रीत के गीत में मौन ही संगीत है,
मन के हारे,
हारे मन में, हारकर ही जीत है,
अंतर सतत गाता रहा पर,
व्यंजन के अवसरों पर,
मैं अपने मौन व्रतों को तोड़ नहीं पाया,
दर्द जब अनहद देखा,
मैं अपनी हदों को,
अनहद से जोड़ नहीं पाया.
“मोड़े हुए पन्नों के भीतर” को पढ़कर या फिर इसके गीतों को अमन से सुनकर मन में एक बात का सुकून तो जरूर है कि आज के समय में युवा कवि सम्मलेन मंच से मार्मिक और सारगर्भित गीतों को गाकर सुनाने वाला एक गीतकार/कवि हमारे बीच है. इस गीत संग्रह के लिए अमन को बधाई और अशेष शुभकामनाएं.
तू भी कहीं-न-कहीं तन्हा जरूर है,
हर आवाज़ पर ये क्यूँ ठहरा जा रहा हूँ..
कोई लाख कहे तू नहीं महफ़िल में,
मैं तो तोड़े हर पहरा जा रहा हूँ..
-नवनीत नीरव-