Monday, December 12, 2011

(बचपन में ये कविता मैने रमेश तिवारी जी से सुनी थी। काफ़ी पसंद आयी थी मुझे। कुछ कवितायें जेहन में हमेशा ताजीं रहती हैं। यह कविता भी उनमें से एक है। अंकल का देहांत 2009 में हो गया है। इस वर्ष उनके पुत्रों और दामाद ने मिलकर उनकी कविताओं का एक संकलन प्रकाशित किया है "नई सुबह" के नाम से। इस बार जब छुट्टियों में घर आया तो पापा ने यह किताब मुझे दिखलाते हुए कहा कि "इसमें तुम्हारी पसंदीदा कविता भी शामिल है। जरूर पढ्ना इसे। उनके बेटों और दामाद ने बहुत अच्छा काम किया कि इस किताब को प्रकाशित करा दिया।" आपके लिये छोटी चिडिया कविता प्रस्तुत है।)

छोटी चिडिया

चिक-चिक करती दाना चुगती,
छोटी चिडिया आती है,
कभी घोंसले में बैठी वह,
बच्चों को सिखलाती है॥

शीत धूप तूफ़ान को सहती,
कभी नहीं घबराती है,
हंसती रहती गाती रहती,
दू्र क्षितिज तक जाती है॥

लाल किरण को देख नाचती,
कलरव में खो जाती है,
फुदक-फुदक कर डाली-डाली,
नूतन गीत सुनाती है॥

सुन्दर सपनों को है लाती,
अन्डों को से कर है जाती,
कलाकार है इस धरती की,
प्रेम हमें सिखलाती है।

- रमेश तिवारी-
स्मारिका "नई सुबह" से

Wednesday, January 12, 2011

नरहेट, तुम हमेशा याद रहोगे.......


न् जाने कितने दिनों से मन में एक बात दबी हुई थी कि राजस्थान के किसी गांव में प्रवास करूँ। न जाने क्यों बचपन से ही राजस्थान के रेत, इसके रंग और यहाँ की लोक कला मुझे आकर्षित करती रही है। जयपुर से प्रकाशित एक बाल पत्रिका के माध्यम से मैं इस राज्य के बहुत ही करीब आ गया था। राजे रजवाड़े, कुछ पुरानी प्रथाएँ, ऊंट, बड़े पगड़ी वाले ग्रामीण, सफ़ेद चूडियों वाली महिलाएं, घूमर और लावनी के बोल, बाजरे की खुशबू और न जाने कितनी बातें जो मेरे मन में अक्सरहां आ जाती थीं. जन्म तो बिहार में हुआ है जो सांकृतिक रूप से काफी समृद्ध रहा है. जब तक खुद को समझ पाता तब तक मैं एक अलग राज्य में था जो पहले अविभाजित बिहार का ही एक भाग था. अब उस राज्य को झारखण्ड कहते हैं. उसके भी अपने रीति –रिवाज अपनी परम्पराएं हैं. ये तो सच है कि हर जगह की अपनी –अपनी कुछ न कुछ खासियत होती है. अपनी लोक कला होती है जो उसकी पहचान है. पर राजस्थान इन सबसे अनूठा है. कल सुबह मुझे नरहेट गांव घूमने का मौका मिला. यहाँ मैं एक प्रशिक्षण के लिए आया हुआ हूँ. बहुत सारे लोग आये हुए हैं अलग-अलग राज्यों से और अलग –अलग पहचान वाले. हुआ यूँ कि मेरे मोबाईल में बैलेंस नहीं था. रिलायंस का फोन यहाँ काम नहीं कर रहा है. इसलिए मैं गांव में चला गया. कई दुकानों में पूछता रहा. पर कहीं भी रिचार्ज नहीं मिल रहा था.सच बताऊँ मेरी भी इच्छा नहीं थी कि मुझे जल्दी से ही रिचार्जे लेकर लौटना पड़े. मेरी उत्सुकता न जाने क्यों बढ़ी हुई थी कि मैं इस गांव को अंदर जाकर देखूं. एक दुकान वाले ने मुझे बताया की आपको गांव के अंदर जाकर रिचार्ज करना होगा. मुझे एक लड़के ने कुछ दूर अंदर ले जा कर बताया की उस घर के अंदर चले जाना वहाँ एक दुकान है वहीँ से आपको रिचार्ज मिल जायेगा. गांव काफी साफ़ सुथरा है. लगभग हर घर में ही कालीन की लूमें दिखाई दे रही थीं. कहीं बकरियों के मिमियाने की आवाज़ सुनाई दे रही थी तो कहीं हुक्के की गुड-गुड. मैं उस दुकान पर पहुंचा. मुझे देखते ही वह समझ गया की कोई परदेशी है. गांव के लोगों की एक खास बात होती है की वे अपने गांव के लोगों को अच्छी तरह से पहचानते हैं चाहे गांव बड़ा हो या फिर छोटा. नरहेट के घर काफी साफ़ सुथरे हैं ये देखने से पाता चला. ज्यादतर घर पक्के हैं. स्कूलों की संख्या काफी अच्छी खासी है. लोगों का व्यवहार भी काफी अच्छा है. कुल मिलाकर कहा जाये तो ये अच्छे और समझदार लोगों के सपनों का गांव है जो मुझे बहुत ही पसंद आया. आते वक्त दिल से एक ही बात इस गांव के लिए निकल रही थी - नरहेट, तुम हमेशा याद रहोगे.