Friday, February 22, 2013

बाबा नागार्जुन और उनका शेष अंडा

60 के दशक की घटना है. कवि सम्मलेन आम जनता के बेहद करीब हुआ करते थे. आम लोग भी खासी रूचि दिखाते थे. उन दिनों बाबा नागार्जुन स्टेज से बहुत प्रसिद्ध हुआ करते थे. स्टेज से एक कविता अक्सर सुनाते थे और जनता की वाहवाही लूटते थे. कविता थी

पाँच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूँखार 
गोली खाकर एक मर गया, बाक़ी रह गए चार

चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन
देश-निकाला मिला एक को, बाक़ी रह गए तीन

तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गए वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाक़ी बच गए दो

दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया है एक गद्दी से, बाक़ी बच गया एक

एक पूत भारतमाता का, कन्धे पर है झण्डा
पुलिस पकड कर जेल ले गई, बाकी बच गया अण्डा.


इस कविता का सन्दर्भ क्या है, सभी अच्छे से परिचित हैं. बाबा नागार्जुन इसे सुनाकर बड़ा आह्लादित हुआ करते थे.
एक बार एक कवि हरिश्चंद्र प्रियदर्शी ने उनकी इसी कविता के जवाब में एक कविता सुनाकर उनकी बोलती बंद कर दी थी. बाबा नागार्जुन की खीज स्टेज पर के एक एक अन्य युवा कवि पर निकली थी, इस कविता के बाद ऐसा बताते हैं. वह कविता जो उस समय के वर्तमान सन्दर्भ पर केन्द्रित थी और बाबा नागार्जुन की कविता के लहजे में ही थी, जो कुछ इस तरह से है:-

पांच पूत रुसी राजा के, पाँचों में तकरार !
एक जनम का दब्बू ठहरा, बाकी बच गए चार !!

चार पूत रूसी राजा के, हालत है संगीन,
एक को सबने गोली मारी, बाकी बच गए तीन !!

तीन पूत रूसी राजा के, गद्दी का क्या हो?
एक को बुद्धू बना निकाला, बाकी बच गए दो !!

दो-दो पूत रुसी राजा के, कौन किसे दे फेंक,
भैया कामरेड, गद्दी का, मालिक होगा एक !!

एक पूत रूसी राजा का, तानाशाही डंडा,
फेंक भागेगी जिस दिन जनता, शेष बचेगा अंडा !!

कवि - हरिश्चंद्र प्रियदर्शी.